Saturday, January 24, 2009

बोझ


हाँ..टूटा था सपना
मैं बहुत रोया था
पर समझ नही पाया
जिसको कभी पाया ही नही
उसको इस तरह से कैसे मैंने खोया था ॥
पढ़ नही पा रहा था फिर भी
मैं अपने मन की चिठ्ठी को
खोदता जा रहा था बस
अपने मन की मिटटी को
और पाया कि वहां उम्मीद की जगह
सिर्फ़ आंसूं बोया था ॥
लम्हे चले जा रहे थे जाने क्यों यूं ही बीतकर
हारता जा रहा था मैं ख़ुद को,सोच से जीतकर
समेटता जा रहा था जिंदगी में सन्नाटे
शायद इस खौफ से कि मेरा हर ख्वाब सोया था ॥
ढूढने में लगा हुआ था जिसको एक रोज से
वो दबता जा रहा था कहीं,मेरे ही बोझ से
पर मैं ही निकला ग़लत,जब ये जाना फकत
मेरे मन ने ही मेरी जिंदगी का बोझ ढोया था ॥
चढ़ती जा रही थी मेरे चेहरे पर
मायूसियों की परत
पड़ती जा रही थी मुझे
बस ये सोचने की लत
क्यों कोई आइना मेरा अपना नही
या कि बरसों से मैंने ही अपना अक्स नही धोया था ॥

8 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर...

अनिल कान्त said...

पारुल मैडम तुस्सी छा गये ....कमाल कर दी सा ....

Udan Tashtari said...

जिसको कभी पाया ही नही
उसको इस तरह से कैसे मैंने खोया था ॥


-बहुत उम्दा अभिव्यक्ति. बधाई.

Arvind Gaurav said...

लम्हे चले जा रहे थे जाने क्यों यूं ही बीतकर
हारता जा रहा था मैं ख़ुद को,सोच से जीतकर
समेटता जा रहा था जिंदगी में सन्नाटे
शायद इस खौफ से कि मेरा हर ख्वाब सोया था ॥

bahut achha likha hai aapne

रश्मि प्रभा... said...

bahut badhiyaa

पूनम श्रीवास्तव said...

Parul ji,
achchhe shabdon men bhavnaon kee abhivyakti.
Poonam

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Parul ji,
achchhee ,bhavnatmak abhivyakti.badhiya kavita kee badhai ke sath,gantantra divas kee mangal kamnayen.
Hemant

कविता भंवर राठी said...

bahot sudar parulji...