Friday, January 9, 2009

हार


वक्त के दिए घाव है
वक्त के साथ भर जायेंगें ......
हम तो इस सोच में है
ये गम लेकर किधर जायेंगें ?
हर शख्स हमको देखता है जिस तरह से
हम तो उस नज़र से भी शायद डर जायेंगें........
ये दर्द अब बेअसर है कहाँ ?
हम तो इसकी एक 'आह' से भी मर जायेंगें ......
ये ज़ख्म रह जायेंगें हरे ,जिंदगी भर के लिए
और हम दर्द के टुकडों में बिखर जायेंगें ......
हम किस भूल में चले थे,ये सपने लेकर
कि शायद ख़्वाबों के रंग निखर जायेंगें .......
एक रोज शायद यही लगा था मुझे
रात की गिरफ्त से उजाले निकल जायेगें ......
पर आज हारा हूँ मैं,अपनी ही सोच से
न पता था की हम इतने बदल जायेंगें ......
चले थे लेकर अरमान खुशी के
क्या ख़बर थी इनमें आंसूं पल जायेगें......

7 comments:

अबयज़ ख़ान said...

जिनके चेहरे पर मुस्कुराहट होती है
उनके सीने में बड़े दर्द छिपे होते हैं।।

आप शानदार लिखती हैं। लेकिन हर नज़्म में इतना दर्द क्यों होता है? बेहद शानदार

विधुल्लता said...

एक रोज शायद यही लगा था मुझे
रात की गिरफ्त से उजाले निकल जायेगें ......
पर आज हारा हूँ मैं,अपनी ही सोच से
न पता था की हम इतने बदल जायेंगें ......
चले थे लेकर अरमान खुशी के
क्या ख़बर थी इनमें आंसूं पल जायेगें...... dard se dard kaa rishtaa hotaa hai ajeeb ...meri nai post padho..sukoon mile shaayad

Vinay said...

बहुत भावनात्मक पोस्ट है!


---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya.

Reetesh Gupta said...

अच्छा लगा पढ़कर ...बधाई

Parul kanani said...

thanx 2 all of u

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर!