Monday, January 12, 2009

मेरी कलम!!


चलती है मन की कलम तो सुकूं सा है
ये कल्पनाओं का घरोंदा मेरे लिए जुनूं सा है!!
जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
उसको शब्दों में पिरोना,ख़ुद से गुफ्तगू सा है!!
ये 'आह' है,नही इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है!!
यूं लगता है, हो रही हूँ मैं धीरे धीरे ख़ुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है!!
इसकी महक है गर हर दिल तक
तो ये मेरी खुशबू सा है!!
एक कसक से उठी नज़्म भर नही
ये लम्हा दिल में जलती आरजू सा है...!!

14 comments:

Rahul kundra said...

यूं लगता है, हो रही हूँ मैं धीरे धीरे ख़ुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है!! bahut khub kaha hai. baat sidhe dil ko choo gayi hai.kahuda aapko kamyab kare. meri taraf se mubarakbaad.

सुप्रतिम बनर्जी said...

बहुत ही उम्दा लिखती हैं आप। पढ़ कर अच्छा लगता है। बहुत-बहुत मुबारक़बाद।

जितेन्द़ भगत said...

वैसे तो सभी पंक्‍ति‍यॉं खास हैं, पर इसकी दार्शनि‍क अंदाज पसंद आई-
यूं लगता है, हो रही हूँ मैं धीरे धीरे ख़ुद से मुखातिब
मेरा वजूद कहीं,मुझसे रु-ब-रु सा है!!

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना।

Manish Kumar said...

पहली बार पढ़ा आपको और आपकी इस नज़्म की पहली चार पंक्तियाँ तो ऍसा लगा कि अपनी सोच पर किसी ने खूबसूरत शब्दों का लिबास पहना दिया है।

चलती है मन की कलम तो सुकूं सा है
ये कल्पनाओं का घरोंदा मेरे लिए जुनूं सा है!!
जो सोच अक्सर इर्द-गिर्द रहती है मेरे
उसको शब्दों में पिरोना,ख़ुद से गुफ्तगू सा है!!
बहुत खूब...लिखती रहें यूँ ही....

नीरज गोस्वामी said...

सलामत रहे आप की कलम और इसी तरह ही नायाब रचनाएँ पढने को मिलती रहें..आभार आपका...
नीरज

P.N. Subramanian said...

बड़ी सुंदर रचना. शब्दों को क्या खूब पिरोया है. आभार.
http://mallar.wordpress.com

Unknown said...

bhai wah to banti hai kyu na kahe hum.

Vinay said...

आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,

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Unknown said...

चलती है मन की कलम तो सुकूं सा है
ये कल्पनाओं का घरोंदा मेरे लिए जुनूं सा है!!

bahut hi sundar kavita hai..

Parul kanani said...

thanx 2 all of u....

Himanshu Pandey said...

एक कसक से उठी नज़्म भर नही
ये लम्हा दिल में जलती आरजू सा है...!!

सुन्दर पंक्तियां. धन्यवाद.

रश्मि प्रभा... said...

ये 'आह' है,नही इसकी खातिर 'वाह' की गुजारिश
ये एहसास जिंदगी की जुस्तजू सा है!!
........
phir bhi waah kahne ka dil karta hai,bahut hi achhi lagi aapki kalam!

Anonymous said...

sunder abhiyakti