Wednesday, November 25, 2009

२६/११ ...एक संकल्प !




ये वक्त की पुकार है
इस पर क्यूँ ,किसी का गौर नही ।
कह रहा है वक्त ,ये चीख कर
अब २६/११ और नही ।।
ना याद कर आँसू बहाओ
ना और ख़ुद को पीर दो ।
हो सके तो बुलंद कर लो आवाज
फैली ख़ामोशी को चीर दो ।
क्यूँ आज सब लोगो के दिल में
उस रोज जैसा शोर नही।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही ।।।
तुम जलाओ अपने मन का दीया
ताकि जीवन की लौ जल उठे ।
जो डूबे पड़े है ख़ुद में ही
वो साथ होकर चल उठे ।
कह दो ये सारे विश्व से
अब हम पहले से कमजोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही ।।।
आजाद अपनी सोच है
आजाद अपनी साँस है ।
क्यूँ करे किसी की गुलामी हम
ना हमे किसी से कोई आस है ।
ये देश एक जनतंत्र है
किसी एक नेता का कोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही ।।।
ना उस रोज गुजरे हादसे को
और तू गमगीन कर ।
तू बना ख्वाबों का इन्द्रधनुष
और इस अम्बर को रंगीन कर ।
तू मिटा दे सबके मन से उस रात का अँधेरा
और बता दे ये गर्व से कोई ऐसी रात नही जिसकी भोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही ।।।
तू रोज अपनी जिंदगी से
नया जज्बा ले,नई सीख ले ।
तू मांग सब अपने आप से
औरों से ना कोई भीख ले ।
तू ख़ुद अपना भाग्य-विधाता है
वक्त के हाथ में तेरी डोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही....
और नही............

7 comments:

Rajeysha said...

तू रोज अपनी जिंदगी से
नया जज्बा ले,नई सीख ले ।

Good Suggestion!

Udan Tashtari said...

अब २६/११ और नही....
और नही............

-बिल्कुल नहीं!!!!!!

Unknown said...

आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया
इस तरह गमज़दों को करार आ गया
जैसे खुशबू-ए-जुल्फ-ए-बहार आ गयी
जैसे पैगाम-ए-दीदार-ए-यार आ गया

जिसकी देदो-तलब वहम समझे थे हम
रू-ब-रू फ़िर से सरे-रहगुज़र आ गए
सुबह-ए-फर्दा को फ़िर दिल तरसने लगा
उम्र-रफ्त: तेरा ऐतबार आ गया

रुत बदलने लगी रेंज-दिल देखना
रंगे-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं
ज़ख्म छलका कोई या गुल खिला
अश्क उमड़े की अब्र-ए-बहार आ गया

खून-ए-उश्शाक से जाम भरने लगे
दिल सुलगने लगे, दाग़ जलने लगे
महफिल-ए-दर्द फ़िर रंग पर आ गयी
फिर शब-ए-आरजू पर निखार आ गया

सरफरोशी के अंदाज़ बदलते गए
दावत-ए-क़त्ल पर मक्ताल-ए-शहर में
डालकर कोई गर्दन में तौक़ आ गया
लादकर कोई काँधे पे दार आ गया

'फ़ैज़' क्या जानिए यार किस आस पर
मुन्तज़िर हैं की लाएगा कोई ख़बर
मयकशों पर हुआ मुहतसिब मेहरबान
दिलफिगारों पे क़ातिल को प्यार आ गया

अबयज़ ख़ान said...

पारुल.. ये वादा है हम सबका.. अब 26/11 और नहीं... कभी नहीं और कभी नहीं..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

तू रोज अपनी जिंदगी से
नया जज्बा ले,नई सीख ले ।
तू मांग सब अपने आप से
औरों से ना कोई भीख ले ।
तू ख़ुद अपना भाग्य-विधाता है
वक्त के हाथ में तेरी डोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही....
और नही............

बहुत सुन्दर!
आत्मविश्वास जगाती रचना के लिए बधाई!

"अर्श" said...

BAS AUR NAHI ....



ARSH

अमिताभ श्रीवास्तव said...

ham vada kar rahe he..par kyaa..jaante he..kese atankvaad band hogaa????savalo ke beech intjaar