Monday, December 31, 2012

नई पहल... (नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !!)


एक अधूरी सी जिंदगी का
अधूरा सा पल
कह रहा है मुस्कुरा कर
चल, मेरे साथ चल !!
मैंने पूछा 'कहां'?
वो हंसकर बोला 'वहां'
जहाँ इस वक्त की कैद से
सारे लम्हे जा रहे है, निकल !!
अच्छा!वो कौन सी जगह है ?
आख़िर हो रहा ये क्या है ?
जो तुम भी रहे हो
आख़िर जाने को मचल !!
वो बोला 'तू है पगली'
बात है ये असली कि
संजो रहा है बीते वक्त को
वहां एक नया कल !!
कुछ नए रंग है जिंदगी के
कुछ नए लम्हे खुशी के
या कि कहो अधूरापन भरने को
है एक नई पहल !!
उम्मीद की नई सुबह
सुकून की रातों के साथ
ढलती सांझ के तले
जिंदगी की तस्वीर, रही है बदल !!


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लफ्ज़ वही हैं
ज़ज्बात वही हैं
अब भी वही रुपहले से ख्याल हैं
अब भी ताज़ा है
यादों का मंज़र
बस एक नए नज़रिए का सवाल है 

Wednesday, December 12, 2012

खामखाह...

वो एक 'उफ़' की आदत
और उस 'आह' का होना
वो मेरा बेतरकीब सा इश्क
और तेरी अनकही 'चाह' का होना !
वो खाली खाली से तेरे इश्क के साँचे
वो मेरे बेडोल से ख़्वाबों के खांचे
जिंदगी सा भी तो कुछ हों पाया नहीं फिट
और उस पर ख़ामोशी की स्याह का होना !
वो छितरे से आंसू और फटी सी हंसी
जिसमें दोनों की तन्हाई बरबस ही आ फंसी
सोचता हूँ किसी रोज की धूप लगा दूं
न जाने कब तक मयस्सर है सुबह का होना!
वो एक रोज के 'तुम' ,जो कहीं तो थे भर गए
छिला जो आइना तो हर तरफ तुम ही बिखर गए
देखता रहा खुद को और यही सोचता रहा
क्या जरुरी है जवाब में किसी 'वजह' का होना ?
मुझे अक्सर ही अक्स में नज़र आते हैं 'घेरे'
कभी 'शून्य ' भी तो हो सकते है 'फेरे'
फिर मैं क्यों अब तलक सोच से उलझ रहा हूँ ?
और अच्छा नहीं है 'खामखाह ' का होना!