Friday, May 31, 2013

कुछ..!



कुछ आढे-तिरछे दिनों का
यूँ तितर-बितर होना !
वो तेरी मासूम गिनती में
फिर से चाँद का 'सिफ़र' होना!
सोचता हूँ कुछ रोज़ के कलमे
तेरे चेहरे पे गढ़ दूँ
नही अच्छा, इबादत में
किसी मजहब का डर होना!
वो कुछ धूप के किस्से
वो कुछ छाँव के हिस्से
कहाँ होता है इस तरह
ख़त जिंदगी का,मयस्सर होना!
वो कतरी नींद के छिलके
वो अनमने से बुलबुले दिल के
बहुत ही शोर करता है
तुझमें शहर होना!
वो फिर से आँखों में फैले
ऐसी इक रात से पहले
रोक सकता है भला कौन
तन्हाई का बहर होना!
नज़्म अब हूक भरती है
सुना है इश्क करती है
बड़ा पेचीदा सा अफसाना है
लफ़्ज़ों की उमर होना!



Saturday, May 11, 2013

डेढ़ इश्क़!

 तभी था ठीक,जब वो मौसमों को दिल में रखता था
डर सा लगता था ,जब कभी वो बारिश को बकता था !!
सुर्ख़ करके हरेक शाम, जो वो भरता था अपना ज़ाम
ख़्वाबों का नशेड़ी था ,कहाँ रातों से छकता था!
सुबह जो देख लेता था, दिल अपना सेक लेता था
सुनहरे लिबास में इश्क उसका खूब फबता था!
यूँ तो कोरी सी हवा थी,मगर उसकी तो दवा थी
ज़र्रे-ज़र्रे में जैसे बस एक वही महकता था !
रोज़ के चाँद गिनता था और चुपके से बीनता था
फिर आदतन खुश्क अम्बर को हँस करके तकता था!
लफंगे कूचे थे कहीं, लुच्ची गलियाँ थी कहीं
डेढ़ से इश्क़ में ,पगली सी फिजाएं भी चखता था!

Wednesday, May 8, 2013

बस !

मैं चुप हूँ
हाथों में सुनहरी धूप मलने तक
और फिर ऐसे ही
उस कोरे से चाँद के जलने तक !!
मुझे मालूम है
तुम यूँ ही नहीं लौट जाओगे
कुछ तो रह जाओगे यहीं
यादों के खलने तक !!
अच्छे भी लगोगे शायद
कुछ हरे होकर
थोड़ी सी जिंदगी
से भरे होकर
टूट जायेंगें खिलोने मगर
तुम्हारा मन बहलने तक !!
इतना तो है कि
इश्क अब खुरदुरा होगा
चुभेगा टीस सा
इस से ज्यादा क्या बुरा होगा
लौट पाऊँगी नहीं मैं
खुद में,तुम्हारे निकलने तक !!
ख़त के लिफ़ाफे भी कि
जैसे हो गए खंडहर
ख़ामोशी अक्सर ही
मचाती है लफ़्ज़ों का बवंडर
यही रुक जाओ बस अब
इश्क का मतलब बदलने तक !!